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राम (गजल)

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राम बनना क्या हँसी परिहास है
राम का जीवन कठिन वनवास है

हो परिस्थितियाँ भले कितनी विकट 
हमको लड़ने का सतत अभ्यास है

द्वंद के अब छन्द चारों ओर हैं
अब कहाँ मङ्गल की कोई आस है

कर्म है व्यक्तित्व से कितना अलग
हाय रे कितना विरोधाभास है

एक भौरा लुट चुके उद्यान में
आज भी लेकर के आता प्यास है
✍  ज्ञानेन्द्र 'पाठक'
      स0अ0
      प्रा वि ग्वालियर ग्रण्ट
      रेहराबाज़ार, बलरामपुर

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