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मेला

हमारा परिवेश के कक्षा 4 के पाठ्यक्रम मेला को गीत रूप में


चलो मेरे प्यारे बच्चों चलों आज मेला,
मेलें में लगा है चाट का ठेला।

ठेले पे बिक रहे पूड़ी व मिठाईं,
खिलौने बेच रही है बुढ़िया माईं।
एक और दुकान जो गुब्बारे की है,
दो रुपये में एक गुब्बारा बिके हैं।
आओ अब चलकर चले झूलें झूला,
चलों मेरे प्यारे बच्चों चलों आज मेला।

गुब्बारें वाला भैया है तो कमाल,
बनाता है बन्दर जो करता धमाल।
गदा को बनाकर कर गया खेला,
चलों मेरे प्यारे बच्चों चलों आज मेला।

मिट्टी के खिलौने हैं बड़े शानदार,
जिन पर रंग चढ़े चटकार।
आओ अब हम ठेला देख आयें,
ठेलें पर चलकर गोलगप्पे खायें।

मेलें में चाट चटपटा मिलता,
आलू की टिकिया में चटनी भी डलता।
देखों अब बढ़ रहा है भीड़ का रेला,
चलों मेरे प्यारे बच्चों चलों आज मेला।

अब एक बात समझ में है आईं,
खुली है देख लो ठेलें पर मिठाईं।
ढ़ेर सारी मक्खियां उस पर भिनभिनाएँ,
और ढेर सारी धूल भी उड़ कर आयें।
इसका है मतलब है ना साफ सफाई,
अब तो बताओं बच्चों कैसे खायें मिठाईं।

जलेबी वाला है जलेबी निकले,
जलेबी निकाल कर जाली से ढंक ले।
इसकी दुकान पर है सफाई,
जलेबी ही खाऊंगा अब मेरे भाई।
मूंगफली भी ले लिया केला,
चलों मेरे प्यारे बच्चों चलों आज मेला।

जितने भी झिलकें निकले कूड़ेदान में डालों,
साफ सफाई पर तुम ध्यान दे लो।
मेले में भी होता कभी लोग बिछड़ जाते,
मम्मी को बुलाते पापा पापा चिल्लाते।
खोने का डर है अकेले न जाओ मेला,
चलों मेरे प्यारे बच्चों चलों आज मेला।

अब देखने चले हम सर्कस भारी,
जादू व झूला और साईकिल की सवारी।
उसके बाद जाकर निशाना लगाएं,
दूसरी दुकान पर जाकर चाट खायें।

दशहरा और दीवाली ईद और कजरी,
लगता है मेला और बाजार सुनहरी।
भीड़ का हो जाता खूब रेला,
चलों मेरे प्यारे बच्चों चलों आज मेला।

हरिद्वार उज्जैन नासिक प्रयागराज,
चलों चलें बच्चों हम देखें कुम्भ मेला।
बिहार में लगता है सोनपुर का मेला,
राजस्थान में पुष्कर का मेला।

बाराबंकी में देवा शरीफ मेला,
मेरठ में है नौचंदी मेला।
बहराइच में दरगाह मेला,
जहाँ लगता है चाट का ठेला।

मेले में जाकर खुशियाँ पायें,
मन की मिठाईं व ढ़ेर फल लायें।
मेले में होता है भीड़ का रेला,
चलों मेरे प्यारे बच्चों चलों आज मेला।।

रचयिता 
दीपक कुमार यादव (स•अ•)
प्रा•वि• मासाडीह
विकास-खण्ड : महसी
जनपद-बहराइच
मोबाइल : 9956521700

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