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झलकारीबाई

झलकारीबाई
कहानी इतिहास के पन्नो में दबी वीरांगना की

बुंदेल खंड में जन्मी है
ना रानी ,ना महारानी है
दब गई जो इतिहासों में
उस वीरांगना की कहानी है

शस्त्र चलाकर बढ़ी हुई थी
ना थी कोई अबला नारी
मार गिराये बाघ, कुल्हाड़ी से
ऐसी थी वो योद्धा भारी

बनी दुर्गा सेना की नायक
पूरन के संग ब्याह किया
मातृ भूमि की रक्षा का
दोनो ने दृढ़ संकल्प लिया

फिरंगियों ने कमजोर समझकर
झांसी पर की चढाई थी
दूल्हेराव जैसे जयचंदों ने
घर में ही सेंध लगाई थी

झांसी न होगी अंग्रेजों की
रण में रानी ने ठाना है
ढाल बनेगी वह रानी की
झलकारी ने तब माना है

ना कम पड़ती है रानी
ना कम पड़ती झलकारी है
काट रही हैं रिपु शीष को
जैसे दुर्गा की अवतारी हैं

धर धर तोप चल रहीं
तर तर कटते, सिर तलवारों से
पर बच ना सका किला झांसी का
गद्दारों के प्रपंच प्रहारों से

देख घिरा जब घायल रानी को
झलकारी ने कदम उठाया है
रानी को सुत संग विदा किया
तब रण में निज रूप दिखाया है

झलक झलक का धोखा था
कौन रानी कौन झलकारी थी
जय भवानी के जयकारों संग
ललकार रही झलकारी थी

स्वतंत्रता की दिव्य मशाल में
दहका गयी वह चिंगारी थी
अंग्रेज समझ रहे जिसे रानी
वो वीरांगना झलकारी थी

बन कर मनु वह सतरूपा
रानी का जीवन बचा गयी
निज प्राण न्यौछावर कर रण में
मातृभूमि का ऋण चुका गयी


✍  रचनाकार-
      चन्द्रहास शाक्य
      सहायक अध्यापक
      प्रा0 वि0 कल्याणपुर भरतार 2
      बाह, आगरा

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