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एकांत

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जब कभी छिड़ते हैं
हजारों द्वन्द मन में
जब खोजने हो कुछ जबाब
स्वयं खुद में
आवश्यकता तब होती
कुछ अकेलेपन की

कुछ शीत हिमखंडों में
छायी चिर शान्ति की
शीत की उन
शरद हवाओं की
जो हर झोंकें में
झकझोर दें तन को
हर उठती सिहरन में
ढूंढे खुद में खुदको

तुझसे भाग नही
रहा में जिंदगी
बस चाह नही रहा
हर वक़्त तुझसे लड़ना
कुछ समय के लिए ही सही
तुझे खुद से है जीना
बस तुझसे लड़ने को
फिर खुद तैयार है होना
चाहता हूँ इसलिए
एकांत में कुछ जीना

✍  रचनाकार-
      चन्द्रहास शाक्य
      सहायक अध्यापक
      प्रा0 वि0 कल्याणपुर भरतार 2
      बाह, आगरा


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