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मर्दाना डर

मर्दाना_डर
कभी दोनों में ऐसा करार हुआ नहीं था और न वो चाहते थे की उसके अम्मी-अब्बू पता चले या रिश्तेदारों को उसकी खिल्ली उड़ाने का मौका मिले पर फिर भी, वो सवेरे उठकर चाय बना देता और बाहर बरामदे में झाड़ू लगा देता, बच्चे को यूनिफार्म, जूते मोज़े पहना कर कंघी करा स्कूल की बस में बिठा आता।
सवेरे के वक़्त अक्सर उसकी मुलाकात मकान मालिक से हो जाती। मकान मालिक उसके मेहनती होने की तारीफ करता। वो शुक्र मनाता मकान मालिक औरों की तरह दकियानूसी ख्यालात के नहीं है।
मियाँ-बीवी-बच्चे समेत शहर में कुल अढ़ाई जन थे। दोनों जन नौकरीशुदा थे। कभी कभी मियाँ के अम्मी और अब्बू आ जाते।
तो सवेरे जो काम 'उसका' रहता वो अम्मी कर देती, बाहर आँगन में झाड़ू, बच्चों को तैयार कराना और यहाँ तक बच्चे को स्कूल बस से लौटते वक़्त लेकर आना भी अम्मी को बहुत अच्छा लगता वो सड़क पर 15-20 मिनट पहले ही जा कर खड़ी हो जाती।
अम्मी अब्बू आते तो मियाँ बीवी को बहुत आराम रहता। घर में रौनक रहती। खाने में स्वाद रहता, पुरानी यादों की तस्वीर खुलती, पास पड़ोसियों से लेकर रिश्तेदारों   की अच्छाइयाँ बुराइयां सब दिल के पिटारे से बाहर आते।
अम्मी अब्बू आते तो किराये का मकान ..घर लगता, सिर्फ अम्मी अब्बू ही नहीं दादा-दादी, पोते,बहू और सास-ससुर जैसे कुछ रिश्ते घर में अचानक बढ़ जाते
ऐसा पहली बार था जब उसके अब्बू अकेले आ रहे थे। रोज़मर्रा के कामों में इस बार बदलाव था। अब्बू बच्चों को बस तक छोड़ने तो जाते पर बाकी काम सब उसकी बीवी को ही करना पड़ता। शौहर चाह कर भी सवेरे का कोई काम नहीं कर पाता। अब्बू क्या सोचेंगे? बीवी का ग़ुलाम!! कभी अपने अब्बू को घर का काम करते नहीं देखा। अम्मी घरेलू औरत थी, गाँव में औरतें घर का ही काम करती या कह लो घर का काम औरतें ही करतीं। *काम अपने आप में मर्दाना-जनाना हुआ करते। खलिहान में झाड़ू लगाना मर्दाना था पर झाड़ू आँगन तक आते आते जनानी हो जाया करती लड़कियों को पढ़ाने पर जोर नही था। तीसरी जमात तक पढ़ी अंजुम दादी-खाला कहती च से चौका और ब से बर्तन पढ़ भी लेंगी तो भी रोटी उतनी हो गोल बनानी होगी।
जितने दिन मियाँ के अब्बू रहे, घर में कभी झाडू रह जाता कभी बच्चे का टिफ़िन। बच्चा अपनी कंघी खुद करना सीख गया था और मोज़े में दाँया-बाँया नहीं होता उसे पता चल गया था।
सवेरे का हौच-पौच रात 11 बजे तक निपटता। ऐसे में तनाव दिखता तो नहीं था पर दबे पाँव घर घुसकर अंदर अंदर दुबका रहता।
अब्बू उस दिन जा रहे थे। वो उन्हें छोड़ने गया था। ऐसा बहुत कम होता था दोनों में ,पर इस बार ट्रेन में खिड़की के पास बैठ अब्बू ने उसका हाथ थाम कर कहा, "बेटा इजलास, सवेरे बहू को बहुत तकलीफ होती है, बड़ी भागदौड़ रहती है, बेचारी से सारा काम अकेले नहीं सम्भलता, घर के छोटे मोटे काम में हाथ बंटा दिया कर। दोनों ही काम पर जाते हो बेटा! अख़बार शाम को पढ़ लिया करना। याद रख बेटा! काम जनाने मर्दाने नहीं होते, लोगों की सोच उन्हें जनाना मर्दाना बनाती है। तू घर का मर्द है, घर की पहली जिम्मेदारी तुझसे होकर जाती है, जा घर जा, बीवी का हाथ बटाने से डरा मत कर..जा
और सर पर हाथ रख पुचकार दिया, जैसे बचपन में करते थे।
आज पहली बार मियां को एहसास हुआ की अनजाने में अपने अम्मी-अब्बू को उसने दकियानूसी बना के रखा था, जो की वो कत्तई नहीं थे।
  आज उसके मन से एक झूठा मर्दाना_डर खत्म हो गया था।

नाम- यशो देव रॉय
विद्यालय - पू0मा0वि0 नाउरदेउर
ब्लाक-कौड़ीराम,गोरखपुर

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