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आदमी

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आदमी गिर जाएगा
कब ?
पता नहीं..
पेड़ से पत्ते गिरते हैं,
उनका भी मौसम होता है
उनके गिरने में भी
नवीनता का भविष्य छुपा होता है
विकास का संकेत होता है
कुछ देने की कामना होती है
चाहे फल हो या
तड़पती धूप से
बचाने के लिए छांव।
उनके गिरने में भी परोपकार
छुपा होता है
पर आदमी !
कब गिर जाएगा ?
पता नहीं।
उत्तुंग शिखर से नदियां
जब गिरती हैं
धरती का रूप बदलती हैं
बन प्रपात सैलानियों का
मन मोहती हैं
मृदु जल से वसुधा को सिंचित करती हैं उनकी विद्रुपता में भी कल्याण
छुपा होता है
उनकी असीमता में भी
उर्वरता छिपी होती है
धरती जल-भरा हो जाती है
सब की प्यास बुझाती है
पर आदमी...
कब गिर जाएगा?
पता नहीं।
अंबर गिरता है अवनि पर
अंबरांत का सृजन करता
मन प्रफुल्लित होता पथिक का
मनोहारी दृश्य देखकर।
पर आदमी.. कब गिरेगा ?
क्या, क्या करेगा ?
पता नहीं।
गिरने से पहले उसकी
बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है
विवेक शून्य हो जाता है, फिर
गिरने के बाद...
कुल,मित्र,समाज से
पतित हो जाता है।

डॉ०अनिल गुप्ता
प्रधानाध्यापक
प्राoविoलमती
विकास खंड-बांसगांव
जनपद-गोरखपुर

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