Breaking News

जिन्दगी

जिन्दगी


                                                                 
जिंदगी तुझको जीते -जीते तुझको ही जीना भूल गये।
हर बार उमड़कर आये तो पर मेघ बरसना भूल गये।

इतनी कटुता, इतने अनुभव स्वप्न में भी मिलते न थे
निशदिन की आपा-धापी में छोटी खुशियां भी भूल गये।

रिश्तों के ताने-बाने में वो सखियाँ प्यारी कहाँ गयीं
प्यारा बचपन वो कहाँ गया वो खेल पुराने भूल गये।

इस रंग बदलती दुनिया में शायद हर कोई अकेला है
कीमत रिश्तों की लगाकर के रिश्तों को निभाना भूल गये।

घर -परिवार के झगड़ों में मनुहारों का दौर भी चलता था
अभिमान भरी वाणी की वो अब दीवार गिराना भूल गये।

धन से हर सुख जो मिल जाता तो पंछी कलरव न करते
मिट्टी की सोंधी खुशबू में हम वक्त बिताना भूल गये।

सुख तो दादी की लोरी में है  सुख तो राखी की डोरी में है
ऐसा सुख माँ-बाप की छाया का कि घाव कहाँ ये भूल गये।

जिंदगी तुझको जीते-जीते हम आज जहाँ जा पहुँचे हैं
वापिस आने की सीढ़ी को भी लाना था साथ ये भूल गये।


लेखिका : 
✍   अलका खरे
       प्र0अ0
       कन्या प्राथमिक विद्यालय रेव,
       ब्लॉक मोठ
       जनपद झांसी

कोई टिप्पणी नहीं