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मन न बनाना छुईमुई सा

आलोचना या निंदा एक मनोविकार है । यह कुछ लोगों को मानसिक आघात पहुंचाता है तो बहुत से लोगों के भविष्य के सुधार का उपकरण भी हो सकता है....

★  मन न बनाना छुईमुई सा

मन न बनाना छुईमुई सा
जो छूते ही मुरझा जाओ
अति भावुकता के सागर से
चीर लहर को बाहर आओ।

              दृढ़  विश्वासी बने रहो तुम
             करो नवीन उत्साह का संचार
             उद्योग शस्त्र के साथ में रहकर
             सहिष्णुशील तुम बनों महान।

अति वियोग में अश्रुपात न करना
मिलन बिछुड़ना लगा रहेगा
बुरे तत्व भी हैं संसृति में
पर तुम सदा सही वरण ही करना।

               निंदा रुपी विष को तुम
               शिव की तरह समा लेना
               किंचित भी परवाह न करना
                उपकारों से उन्हें दबा देना।

निंदा को हथियार समझना
यह सुधार के संकेतक हैं
शनै: शनै: बढ़ते रहना
यही प्रगति के द्योतक हैं।

                    निज उन्नति के आकांक्षी को
                    मस्तिष्क खुला रखना होगा
                   उच्च ध्येयअभिलाषी को
                    निंदा को सहना होगा।

जग है ऐसा नाट्य मंच जिसमें
सब अभिनय करते हैं
पात्रानुकूल संवाद बोलकर
मोहित मन सबका करते हैं।


लेखक
डॉ0 अनिल कुमार गुप्त,
प्र०अ०, प्रा ०वि० लमती,
बांसगांव, गोरखपुर

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