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असली कुर्बानी

असली कुर्बानी


           चन्दन की बीवी चन्दन के घर  काम से लौटकर आते ही “अजी सुनते हो आज तुम्हारा ‘बाबू’ फिर से दिनभर बहुत परेशान किया, मुझे खूब घर में दौड़ाता हैं। मैं थक जाती हूँ अब इन बूढ़ी हड्डियों में दम नही दौड़ने की तुम इसे भी अपने साथ काम पर ले जाया करो ,अच्छा-अच्छा परेशान न हो अभी मैं इसकी खबर लेता हूँ। हा हा..ज़रूर उसकी खबर लो चन्दन कमरे में घुसते ही अपने बाबू को लगा डांटने ।ये बाबू और कोई नही उसका बकरा था,जो उसने पिछले 8 साल से अपने लड़के से भी अधिक प्यार से पाला-पोसा था।चन्दन की कोई औलाद न थी यही बकरा उन दोनों के जीने का सहारा बना हुआ था, जैसे ही वो अपने बाबू को डांटना लगा तभी वो पास आकर रोने लगा।इतने में चन्दन की बीवी कमरे में आयी..अरे ये क्यों रो रहा चुप हो जा अब मै तेरी शिकायत नही करूँगी कह बाबू को गले से लगा लेती हैं।



                चन्दन के मोहल्ले में हिन्दू-मुस्लिम दोनों सम्प्रदाय के लोग रहते थे..पर दोनों एक दूसरे के फूटे आँख नही समाते..आये दिन आपस में दोनों सम्प्रदाये के लोग आमने-सामने आ जाते,जिससे शहर का माहौल गर्म हो जाया करता था।चन्दन के पड़ोस में नए मुस्लिम किरायेदार आये हुए थे जिनमें 2 लड़के  8और 5 साल एक लड़की 4 साल की थी। चन्दन और उसकी बीवी को इनका आना अखड़ता था,आये दिन दोनों घरों में कहा सुनी हो जाती।बकरीद का त्यौहार नज़दीक था सभी मुस्लिम परिवार बकरीद के लिए बकरे खरीद चुके थे और इनके परिवार के बच्चे अपने-अपने बकरे लेकर पूरे मोहल्ले में टहलाते घूमाते पर रहीम के बच्चे चुपचाप ये सब नज़ारा देखते रहते।



                      रहीम के घर आते ही सभी बच्चे अब्बू-अब्बू बकरीद आने को हैं हम लोगों के यहाँ बकरा कब आएगा,रहीम हा बच्चों ज़रूर आएगा आज काम से देर हो गयी कल लौटते वक़्त ज़रूर लाऊँगा।तीनों बच्चे बहुत खुश हुए बकरा जो कल आने वाला था।रहीम की बीवी -अजी देखो मुहल्ले के सभी घर के बच्चे दिनभर अपने अपने बकरे लेकर टहलते रहते हैं इसे देख बच्चे बहुत परेशान करते हैं और कुर्बानी भी तो करानी हैं झुंझलाते हुए रहीम कहा से ले आऊ 4 हज़ार रखा हूँ  बड़कू का स्कूल में दाखिला कराने के लिए  ,बाजार में 4 हज़ार तक के बकरे भी नही मिल रहे हैं और कुर्बानी तो उनपर फ़र्ज़ हैं जिनके पास इतनी दौलत हो..फिर भी कल देखता हूँ ये कहकर रहीम गुस्से में जाकर सो गया।  इधर चन्दन को अपने बाबू के चोरी का डर सता रहा कि पड़ोस में बकरा आया नही कही उसका बाबू चोरी न हो जाये वह उसे कमरे में बन्द रखता,चन्दन की बीवी कभी कभी कान लगा रहीम और उसकी बीवी की बाते भी सुनती रहती।



            दूसरे दिन चन्दन और उसकी बीवी दरवाजे पर बैठे रहीम के बच्चों को खेलता देख रहे थे कि इतने में रहीम को आते देख तीनों बच्चे अब्बू ..अब्बू ..”आज भी बकरा नही लाये हम लोगों से आपने तो कहा था कल लाऊँगा ..पर अब तो कल बकरीद हैं,अब क्या होगा हम लोगों के घर कुर्बानी नही होगी ‘अल्लाह’ नही खुश होंगे।अल्लाह नही खुश होंगे तो हम लोगों के घर पैसे नही आएंगे।” बच्चों के मासूम सवालों की छड़ी से रहीम अपने को रोक न सका…’अरे ये किसने कहा की अल्लाह खुश नही होंगे’ ‘अब्बा मोहल्ले के सभी बच्चे कह रहे थे जिसके घर क़ुरबानी नही होती अल्लाह उससे नाराज़ रहते हैं.’ “नही, बच्चों अल्लाह बहुत बड़े हैं और वो दिल देखते हैं तुम लोगों का दिल पाक हैं नाराज़ नही होंगे।”इधर ये देख चन्दन और उसकी बीवी अपने को रोक न पाये और घर के अंदर चले गए।


     रहीम अपनी बीवी से बच्चे बहुत जिद कर रहे हैं और मैं बाजार भी गया पर बाजार में बकरे 10 से लेकर 50 हज़ार तक हैं 3-4हज़ार में कोई बकरा नही मिल रहा हैं क्या करू समझ में नही अ रहा हैं..अगर नही लाता तो बच्चों का दिल टूटता क्या करू समझ नही अ रहा हैं।अल्लाह रहम करे ये कह रहीम सर पकड़ बैठ जाता हैं इतने में दरवाजे पर खटखटाने की आवाज आयी रात में 11 बजे कौन आया ये कह कर रहीम की बीवी दरवाजा खोली सामने और कोई नही उनके दुश्मन चन्दन और उसकी बीवी थी  रहीम की बीवी गुस्से में ,’कहिये क्या बात हैं अब इतने रात में लड़ने चली आई...कल त्यौहार हैं सब्र की होती।” नही- नही ,अरे हम लड़ने नही हम तो कुछ देने आये हैं और तभी चन्दन की बीवी रोते हुए अपना बाबू को रहीम के हवाले करते हुए ये ले आप बच्चों का दिल न तोड़े इसकी कुर्बानी करा दे..हम दोनों ने शाम को बच्चे और आपकी बात सुन कर ये फैसला किया कि अब ये ‘बाबू’ “हमारे किसी काम का नही रोज़-रोज़ इसकी सरारत से तंग अ गए हम लोग,अब हम लोगों से नही सम्भलता अब इन हड्डियों में दम भी नही इसे सम्भालने की ...रहीम चन्दन को गले लगाते हुए अरे ,अरे ये क्या आपने तो इसे अपने बेटे से भी बढ़ कर  पाला हैं..तो फिर नही..नही...और अल्लाह को तो यही कुर्बानी पसन्द हैं असली कुर्बानी तो यही हैं हमे नही चाहिए आपका बकरा अल्लाह तो दिल देखता हैं और असली कुर्बानी तो आपने दे दी यही कुर्बानी अल्लाह को  बेहद पसन्द हैं दोनों परिवार सारी कट्टूता मिटा एक हो जाते हैं और धर्म के ठेकेदारो पर ज़ोरदार तमाचा भी जड़ते हैं।


✍ रचनाकार :
अब्दुल्लाह ख़ान
(स.अ.)
प्रा.वि.बनकटी 
बेलघाट
गोरखपुर(उ.प्र.)



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