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असली ख़ुशी भरी दीवाली

जब भी इक मासूम फूल को अक्षर-ज्ञान करा पाता
बिलख-बिलखकर रोते चेहरों पर मुस्कान सजा पाता
दीवाली का दीया उस पल दिल में रोशन हो जाता
सब पायें ऐसी दीवाली, तन-मन पावन हो जाता

सूनी आँखें, कम्पित काया की जब लाठी बन पाता
या फिर कोई भोला बच्चा मुझमें ही सब-कुछ पाता
दीवाली का दीया........
सब पायें ऐसी दीवाली.......

जब भी किसी थके-हारे का थोड़ा बोझ उठा पाता
भव-दुःखों से तप्त नयन में हर्ष-बिन्दु छलका पाता
दीवाली का दीया........
सब पायें ऐसी दीवाली.......

जब भी जग के अन्धकार में थोड़ा टिमटिम कर पाता
ऊसर-बंजर धरती पर जब सुरभित सुमन खिला पाता
दीवाली का दीया........
सब पायें ऐसी दीवाली.......

जब भी मर्म-बात को सुनकर करुणा-विगलित हो जाता
ऊँचे-गहरे सत्त्व-भाव से उर को भरा हुआ पाता
दीवाली का दीया........
सब पायें ऐसी दीवाली.......

रचनाकार
प्रशांत अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय डहिया,
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी,
जिला बरेली (उ.प्र.)।

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