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सवेरा लेकर आऊँ

मन करता है बनकर तारे
रात को भी दिन जैसा बनाऊँ।

मन करता है सूरज बनकर,
रोज सवेरा लेकर आऊँ।

मन करता है बादल बनकर ,
पानी यहाँ वहाँ बरसाऊँ ।

मन करता है बन के हवा सा,
सबको शीतल कर जाऊँ ।

मन करता है पक्षी बनकर,
दूर देश तक घूम के आऊँ।

मन करता है बनकर तितली,
फूल फूल पर मंडराऊँ।

मन करता है बनकर चिड़िया,
चीं चीं चूं चूं गीत सुनाऊँ ।

मन करता है तोता बनकर,
सबकी बातें मै दोहराऊँ ।

मन करता है बन्दर बनकर,
डाल डाल पर कूदता जाऊँ।

मन करता है पतंग बन कर के ,
दूर आकाश में उड़ता जाऊँ।

रचयिता
गीता गुप्ता "मन"
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय मढ़िया फकीरन 
विकास क्षेत्र बावन 
हरदोई

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