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क्या लिखूँ

पावस की प्रथम फुहार लिखूँ,
या नदिया की वो धार लिखूँ,
कुछ लिखने को जी करता है,
तू बता मुझे क्या यार लिखूँ?

वो बचपन की मीठी यादें
हँसते ,गाते,मुस्काते दिन,
आँखोँ को नम कर जाते हैं
जब याद आते हैं वो पल-छिन,
वो अध्यापक की बेंत लिखूँ,
या माँ का प्यार-दुलार लिखूँ

कुछ लिखने को जी करता है.....
जीवन के कोरे पृष्ठों पर
कुछ लिख पाने की चाह लिए,
मैं बहुत दूर तक चला गया
मन में भरपूर उछाह लिए,
और विश्वासों के परदे में ,
मैं छला गया सौ बार लिखूँ।

कुछ लिखने को जी करता है....
सबने अब तक है दिया बहुत
निधियां अनमोल लुटायीं हैं ,
कुछ बड़ी क़ीमती चीजें हैं
जो मेरे हिस्से आयीं हैं ,
अब दर्द का पारावार लिखूँ,
या आँसू के उपहार लिखूँ?

कुछ लिखने को जी करता है...
सपने मोती-से बिखरे हैं
और आशाओं का दमन हुआ,
चाँद-सितारे कहाँ खो गए
मन का सूना गगन हुआ,
एकतरफ़ा युद्ध लड़ा'राहुल'
क्या जीत लिखूँ, क्यों हार लिखूँ
कुछ लिखने को जी करता है,
तू बता मुझे क्या यार लिखूँ।

रचयिता
राहुल शर्मा,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कुंभिया
शिक्षा क्षेत्र - जमुनहा,
जनपद - श्रावस्ती।

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