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ख़्वाब तुम रखो

आसमाँ छूने का,भले ख़्वाब तुम रखो,
मगर ज़मीं से भी नाता,लाजवाब तुम रखो।

तुम्हारी कोशिशें भी,एक दिन रंग लायेंगी,
बस अपने दिल में हौंसले,बेहिसाब तुम रखो।

बुज़ुर्गों की भी हालत पे, ज़रा तुम ग़ौर फ़रमाना,
ख़यालों में अपना जब भी, शबाब तुम रखो।

कुछ सवालों को तुम,अनसुना भी कर देना,
ज़रूरी नहीं कि सबका, जवाब तुम रखो।

उजाले के लिए तो एक दीपक,बहुत होता है,
क्या फ़ायदा ग्रहण लगा, आफ़ताब तुम रखो।

हर इंसान में भगवान की छवि नज़र आयेगी,
नज़रिया अपना बस,ना ख़राब तुम रखो।

आज के दौर में ये भी ज़रूरी,हो गया 'राहुल'
कि कभी-कभी चेहरे पर नक़ाब तुम रखो।

लेखक
राहुल शर्मा,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कुंभिया
शिक्षा क्षेत्र - जमुनहा,
जनपद - श्रावस्ती।

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