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वीरों की आहुति

आज़ादी के रण में वीरों ने सब कुछ वारा था,
रहे तिरंगा ऊंचा हरदम हम सबका ये नारा था।

यौवन पुष्पित हुआ तभी, प्राणों ने पिंजर छोड़ा था,
भारत माँ के वीर लाल ने माँ का दामन छोड़ा था।

प्राणों की आहुति देने को लगी गजब की बाज़ी थी,
करने को स्वागत सपूत का काल प्रेम से राज़ी थी।

संगीनों से खेल रहे थे, सीने पर गोली झेल रहे थे,
जोश बाजुओं में भर कर अरि की ताकत तौल रहे थे।

फंदे को जब गले लगाया मृत्यु से ब्याह रचाया था,
बना बराती बड़े हर्ष से यमराज स्वयं ही आया था।

उदित हुआ रवि नवप्रभात ले भरी तरुण अंगड़ाई थी,
बुझा दीप उस माँ का जिसने नई जवानी पाई थी।

बलिदानी की इस गाथा को हम बड़े हर्ष से गाते हैं,
देख त्याग तप उन वीरों को शत-शत शीश झुकाते हैं।

लेखिका
कविता तिवारी
प्रा0वि0 गाजीपुर (प्रथम),
विकास खण्ड-बहुआ,
जनपद फतेहपुर।

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