वृक्ष: अमृत कलश
प्राण- ऊर्जा सतत बाँटते ही रहे,
वृक्ष अमृत- कलश हैं, बचाओ इन्हें।
पुष्प के हास से मधु बिखरता रहे,
पत्तियों में हरापन निखरता रहे।
स्वार्थपरता अमर- बेल घेरे हुए,
प्राण- दाता सहज हैं, बचाओ इन्हें।
थक गया क्लांत- मन, शांति- सुख मिल रहा,
मीत- छाया सुखद मन- सुमन खिल रहा।
हो रहा पुष्ट तन दिव्य फल खा रहे,
वृक्ष जीवन- प्रदाता, बचाओ इन्हें।
चहचहाते विहंग नीड़ से झांकते,
फूल के संग भ्रमर राग- रस आंकते।
मेघ को रोक पावस बुलाते यही,
वृक्ष जल दे रहे हैं, बचाओ इन्हें।
काक- पिक का बसेरा सदा से रहा,
मृग- समूहों का डेरा सदा से रहा।
युग- युगों से सभी वन- उपज खोजते,
वृक्ष सब कुछ लुटाते, बचाओ इन्हें।
रचयिता
साधना शुक्ला,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय लोधनपुर,
बहुआ , फतेहपुर।
वृक्ष अमृत- कलश हैं, बचाओ इन्हें।
पुष्प के हास से मधु बिखरता रहे,
पत्तियों में हरापन निखरता रहे।
स्वार्थपरता अमर- बेल घेरे हुए,
प्राण- दाता सहज हैं, बचाओ इन्हें।
थक गया क्लांत- मन, शांति- सुख मिल रहा,
मीत- छाया सुखद मन- सुमन खिल रहा।
हो रहा पुष्ट तन दिव्य फल खा रहे,
वृक्ष जीवन- प्रदाता, बचाओ इन्हें।
चहचहाते विहंग नीड़ से झांकते,
फूल के संग भ्रमर राग- रस आंकते।
मेघ को रोक पावस बुलाते यही,
वृक्ष जल दे रहे हैं, बचाओ इन्हें।
काक- पिक का बसेरा सदा से रहा,
मृग- समूहों का डेरा सदा से रहा।
युग- युगों से सभी वन- उपज खोजते,
वृक्ष सब कुछ लुटाते, बचाओ इन्हें।
रचयिता
साधना शुक्ला,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय लोधनपुर,
बहुआ , फतेहपुर।
शानदार कविता
जवाब देंहटाएंअद्भुत .......
जवाब देंहटाएंअद्भुत .......
जवाब देंहटाएं