Breaking News

कुछ रिश्ते अन्जाने से


हासिल क्या जल जाने से
मत    पूछो   परवाने    से

आब,  मना कब  करता है
जमने  से,  गल   जाने  से

उल्फ़त  है  तो  दुनिया  है
कह   दो   हर  दीवाने  से

इठलाती  है   नदिया  भी
लहरों   के   बलखाने  से

क़द ग़ुरूर का बढ़ता है
क़ीमत के  बढ़ जाने से

अपनों से भी बढ़कर हैं
कुछ  रिश्ते  अन्जाने से

रचयिता
© पुष्पेन्द्र 'पुष्प'

कोई टिप्पणी नहीं