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ज्यादा बेहतर है

अच्छी औरत से, 
बुरी औरत बन जाना
ज्यादा बेहतर है ।
झूठ के नकाब को उतारकर,
सच का मुखौटा, पहिन लेना
ज्यादा बेहतर है ।

सच को अधरों तक लाकर
उन्हें सिले रखने से
तल्खी से बड़बड़ा देना
ज्यादा बेहतर है ।

गले के क्रुन्दन से, 
आँखो से सैलाब का बह जाना
ज्यादा बेहतर है ।
अवसाद में घिरे रहने से, 
अवसाद को चीरकर
उजाले की नदी में बह जाना  ...
ज्यादा बेहतर है ।

रसोई में रोने से, 
बरतनों को धम्म से पटक देना
ज्यादा बेहतर है ।
कोई तुम्हारा चैन छीन ले ,
उसके तन से कलेजा खींच
अपना गुबार निकाल लेना  ....
ज्यादा बेहतर है ।

कोई मेरे शब्दों की सीमा तय करे, 
उसके मुँह पर,
रसीदी टिकट चिपका देना .....
  ज्यादा बेहतर है ।

घुटे -घुटे रहने से, 
शहर का एक चक्कर लगा लेना
ज्यादा बेहतर है ।
अपने सपनों से समझौता करने से, 
सपनो में मर जाना
ज्यादा बेहतर है ।

मृत्यु भोज खाने से, 
घर में उत्सव मना लेना
ज्यादा बेहतर है ।
दूसरों की हँसी का पात्र बनने से, 
उसके मुँह पर चिढ़ा देना ......
ज्यादा बेहतर है ।

यूँ घुट -घुट के जीने से, 
सबकी बाट लगा देना ....
ज्यादा बेहतर है ।
किसी के रोकने -टोकने की परवाह किए बिना
अपने मागॆ पर चलते रहना ....
ज्यादा बेहतर है ।

इतने पर भी कोई न माने तो,
दे दनादन  दे दनादन ....कर देना .......
सबसे बेहतर है ।

रचयिता
सारिका सिंह "  सारिका  "
प्र0अ0 प्राथमिक विद्यालय ऊसवा
जनपद हाथरस

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