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सृजन

मृत्यु की गोद में सृजन पलता है,
ये सुनकर बड़ा ही विस्मय होता है।
हकीकत में ये ही सच होता है,
किसी का जाना किसी का आना होता है।।

जा रही पीढ़ी और आ रही पीढ़ी के बीच,
बाबा नाती का रिश्ता होता है।
ये आँखे छल छला उठती हैं थीं,
जब पिता का जाना पुत्र का आना होता है।।

कुछ लम्हो में जिंदगी बदलती है,
साया उठते ही पिता का, पुत्र बड़ा सयाना हुआ है।
माँ का साथ न छूटता था कभी,
अब पत्नी से पूछ कर माँ से मिल पाना हुआ है।।

एक थाली में खाने को जो भाई जाते थे मचल,
उनको एक रसोई का खाना खाये हुये जमाना हुआ है।
जिस बहन के प्यार से सजता  मेरा घर संसार था,
उसके घर अब मुद्दतों से न जाना हुआ है।।

जिन दोस्तों के बिन शामें न हुआ करती थीं मेरी,
उनसे एक अरसे से न मिलना हुआ है।
जिंदगी की जद्दोजहद में अच्छा या बुरा,
मेरे पुराने रिश्तों पर नये का सृजन हुआ है।।


रचयिता
अभिषेक द्विवेदी "खामोश"
प्राथमिक विद्यालय मंनहापुर
सरवनखेड़ा कानपुर देहात।

 

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