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भारत माँ का लाल-चंद्रशेखर आजाद

तम की काली रात लीलने, जो बिजली सा कौंधा था।
दम्भी अंग्रेजों को जिसने, मरते दम तक रौंदा था।।
लेकिन वो भी समझ न पाया, घात लगाए था भेदी।
क्रांति यज्ञ में आखिर उसने, आहुति प्राणों की दे दी।१।

भारत माँ का लाल अनोखा, अपनी धुन में मस्ताना।
वह "आजाद" सिंहशावक वह, आजादी का दीवाना।।
नमन उसे है आज हृदय से, नत है सम्मुख ये माथा।
भारत की धरती सदियों तक, गायेगी उसकी गाथा।२।
   
रचयिता                            
डॉ0 पवन मिश्र
उ0 प्रा0 वि0 - बरवट, 
बहुआ, जनपद फतेहपुर

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