वीर सपूतों के लिए
"वीर सपूतों " आपके लिए
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जब- जब बन आयी प्राणों पे
धरा कदम जब जब बाणों पे
अकुलाया मन ये सोचे बहुत
क्या खोया क्या पाया है|
धरा कदम जब जब बाणों पे
अकुलाया मन ये सोचे बहुत
क्या खोया क्या पाया है|
मातृभूमि का बड़ा वीर ये
देखों कैसा है गंभीर ये
लिपटा है माँ के आँचल में
माँ को खूब रुलाया है|
देखों कैसा है गंभीर ये
लिपटा है माँ के आँचल में
माँ को खूब रुलाया है|
अकुलाया मन सोचे बहुत
क्या खोया क्या पाया है
क्या खोया क्या पाया है
चीर बर्फ का पुख्ता सीना
चल उठ बढ़ अभी है जीना
फिर दौड़ो विद्युत बन के
तुमको बिस्तर कब भाया है|
चल उठ बढ़ अभी है जीना
फिर दौड़ो विद्युत बन के
तुमको बिस्तर कब भाया है|
अकुलाया मन सोचे बहुत
क्या खोया क्या पाया है
क्या खोया क्या पाया है
भर दो प्रबल झंकार ह्रदय में
झूम उठो गर्वित प्रलय में
चूमने को पदचिन्ह तुम्हारे
निष्फल प्राण बिछाया है|
झूम उठो गर्वित प्रलय में
चूमने को पदचिन्ह तुम्हारे
निष्फल प्राण बिछाया है|
अकुलाया मन सोचे बहुत
क्या खोया क्या पाया है
क्या खोया क्या पाया है
है वक़्त बहुत विपरीत बड़ा
साँस का स्वर है मन्द पड़ा
स्वर्ग करो फिर इसी धरा को
बिता वक्त कब आया है|
साँस का स्वर है मन्द पड़ा
स्वर्ग करो फिर इसी धरा को
बिता वक्त कब आया है|
अकुलाया मन सोचे बहुत
क्या खोया क्या पाया है
क्या खोया क्या पाया है
ये वरदान विधाता अब दे
हिम अधरों की राह न अब दे
हर संयोग वियोग संताप
क्यों तुमने ही पाया है|
हिम अधरों की राह न अब दे
हर संयोग वियोग संताप
क्यों तुमने ही पाया है|
अकुलाया मन सोचे बहुत
क्या खोया क्या पाया है ।
क्या खोया क्या पाया है ।
रचयिता
रीति गुप्ता
प्राथमिक विद्यालय सहुलखोर
खजनी, गोरखपुर
Very good (o)
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