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मत पड़ना तुम इश्क़ विश्क में..

अबकी बारी यार हमारी,
प्यार व्यार से तौबा है।
रात रात भर दिल जलता है,
घाटे का यह सौदा है।
गोरा रंग हसीनों का पर,
दिल उतने ही काले हैं।
मजनूं फ़िर भी नादानी में,
उन पर मरने वाले हैं।
गुल्लक फोड़ी सारी मैंने,
खाते वाते ज़ीरो हैं।
ऐसी वाट लगी है हम बस,
अपने मन के हीरो हैं।
जाने कितने होटल के बिल,
तोहफ़े कितने दे डाले।
लुटा पिटा महसूस करूँ मैं,
ख़्वाब न कोई ये पाले।
अब्बू की जूती ने मेरी,
ऐसी चाँद बजाई है।
आँखों में अँधियारा छाया,
कान बजी शहनाई है।
मतलब भर की सेवा पाकर,
अक़ल ठिकाने आई है।
दूर रहूँगा इन लफड़ों से,
क़सम यही अब खाई है।
मत पड़ना तुम इश्क़ विश्क में,
कपड़ों पर कढ़वा लेंगे।
वरना फ़ोटो माला वाली,
घर वाले मढ़वा लेंगे।
निकाह जहाँ कहेंगे अब्बू,
ख़ुशी- ख़ुशी पढ़वा लेंगे।
ग्रुप मिस मैच भले हो लेकिन,
ख़ून वही चढ़वा लेंगे।
रचनाकार- निर्दोष कान्तेय
काव्य विधा- ताटंक छंद

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