Breaking News

अरहर की आत्मकथा

      मैं अरहर हूँ, मैं देश की प्रमुख दलहन हूँ और सबसे स्वादिष्ट दाल का दर्जा भी निर्विवाद रूप से मुझे मिला हुआ है, मैं उत्तर भारतीय थाली का सबसे प्रमुख अंग हूँ। चावल के साथ मेरी मित्रता तो सर्व विदित है क्या बच्चे क्या बूढ़े सब हम दोनों को मिला के चाव से खाते है। चाहे अमीर हो चाहे गरीब सब मुझे पर्याप्त स्नेह देते है।
   आजकल लोग मुझ पर व्यंग कर रहे है, चुटकुले बना रहे है कह रहे है कि बड़े भाव बढ़ गए मोहतरमा के आजकल पांव जमीन पर ही नही है अरहरिया के। कभी सोचा है ऐसी स्थिति क्यों आई इसके लिए कौन जिम्मेदार है? चलिए इस आत्म कथा के माध्यम से अपनी आत्म व्यथा आप सब को बता रही हूँ।
     
     आज से 30 साल पहले तक देश की कृषि योग्य भूमि पर मेरा ससम्मान हिस्सा था। असिंचित क्षेत्र में पैदा होती थी मानसूनी वर्षा से ही काम चल जाता था मेरा पानी की बहुत प्यास नही थी मुझमे। मेरी आयु भी अन्य फसलों से लम्बी है खरीफ में बोयी जाती हूँ रवि में काटी जाती हूँ इसलिए अन्य फसले भी मेरा सम्मान करती है। जिस खेत में एक साल रह जाती थी उस खेत को इतना नाइट्रोजन दे जाती थी कि अगली दूसरी फसल लहलहा जाती थी इसीलिए दूसरी फसलें मेरे खेत में स्थान पाने को लालायित रहती थी। फसल के बाद मेरे तने के जितने उपयोग होते थे शायद अन्य किसी के नही। डलिया और झौवा बनते, चूल्हे पे रोटी बनती, खपरैल के नीचे लगती क्या क्या बताऊँ। हा मेरा भूसा भी जानवर बहुत चाव से खाते।

     फिर प्राचीन भारतीय संस्कृति की तरह मेरे भी दुर्दिन शुरू हुए। जैसे जैसे सिंचाई के साधन बढ़ते गए कृषि योग्य भूमि में मेरा हिस्सा घटता गया। आप लोग मेरे पिता अर्थात किसान को भी मेरा उचित मूल्य नही देते थे जिससे मैं उसे बोझ लगने लगी। उसी खेत पर वो दो से तीन फसलें कर के अधिक लाभ कमाने की सोचने लगा। नगदी फसल का महत्व बढ़ने लगा। मेरा क्षेत्रफल घट कर आधे से भी कम रह गया उत्पादन साल दर साल गिरता गया किन्तु माँग बढ़ती गयी किसी तरह से मैं आपकी जरुरतो को पूरा करती रही क्षेत्रफल कम हुआ तो मैंने अपना उत्पादन बढ़ाया अतिरिक्त प्रयास के द्वारा किन्तु आप लोगों ने मेरे पिता को उचित मूल्य नही दिया। सरकारों ने भी मेरे उत्पादन को परोक्ष रूप से हतोत्साहित किया मेरे विकास के लिए सम्यक योजनाओं का आभाव रहा।
     शासन सत्ता को मुझ में रूचि नही, आप लोगों की भी रूचि केवल मेरे स्वाद तक आप की चिन्ता केवल मेरी कीमत तक थोडा बहुत किसान ही मेरे लिए चिंतित। इधर 2-3 सालों से आप की कार गुजारियों से ऊपर वाला भी मेरे विपरीत हो गया जब मुझे जल की आवशयक्ता तब मिलता नही और जब मैं अपनी जवानी पर अपने पुष्पों के साथ होती हूँ तो वर्षा कर के मेरी कोख ही उजाड़ देता है, कीड़ो के अनुकूल मौसम बना देता है जिससे मेरी फसल ही नष्ट हो जाती है। मैं कहाँ तक प्रकृति से लडूं?  2 वर्षो से यही चल रहा है।
      हाँ अगले वर्ष के लिए भी आपको बता दूँ किसी दिन मौका लगा के मेरे खेतों में आओ मैं जहाँ जहाँ हूँ 60% सुख चुकी हूँ यदि यही हाल रहा तो इस वर्ष मेरा उत्पादन आधा रह जायेगा और अगले वर्ष आप को 400 रूपये में मिल जाऊँ तो बड़ी बात है।
       यदि यही स्थिति रही तो शायद कुछ वर्षों में मैं बीती बात बन जाऊँ। जिस तरह से कई फसलें लुप्त या लुप्त प्राय हो गयी कहीं मैं भी उसी स्थिति में न पहुँच जाऊं?
      मैं सदियों से आपका पालन पोषण करती आयी हूँ अब मुझे आपके संरक्षण की आवश्यक्ता है जिससे आपकी आने वाली पीढ़ियों को भी मैं अपने स्वाद और लाभ से परिचित करवा सकूँ।
मेरा भविष्य आप सब के हाथ!!!!
आपकी प्यारी 
'अरहर'

________________________________________


रचनाकार परिचय : 
साहित्यिक प्रतिभा के धनी श्री सौजन्य त्रिपाठी प्राथमिक शिक्षक के रूप में जनपद फतेहपुर के विजयीपुर ब्लाक में कार्यरत हैं। सामयिक घटनाओं  को तुरंत किसी साहित्यिक विधा में ढाल प्रस्तुत करने की कला में माहिर सौजन्य जी का साहित्यशाला में स्वागत है। संपर्क : 09628655077 


कोई टिप्पणी नहीं