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लौट आना प्रिये

उगते हुए सूरज
हो तुम
अभी,
बहुत होगा
वंदन - अभिनंदन
पर दर्प से दीप्ति
तुम्हारी प्रसन्नता
जब चरम पर होगी,
क्या देख सकोगे
तुम किसी मन की पीड़ा ,
फिर
जब तुम
ढलने लगोगे
जब होंगे बंद
द्वार प्रशंसा के,
कौन समझेगा
तुम्हारी पीड़ा ,
तब भी
तुम्हारे सहारे हैं
ये जो चाँद - सितारे
घर आने की
तुम्हारी राह
देखेंगे
कि तुम लौट आना प्रिये
जीवन के पथ पर
द्वार खोले
मिलेगा तुम्हें कोई अपना
तुम्हारी रश्मियों में
देखने को
अपना सवेरा
---- निरुपमा मिश्रा "नीरू "

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