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पिता का हिस्सा

माँ कि ममता की कहानियाँ तो बहुत सी सुन रखी होंगी आप लोगों ने लेकिन एक बाप की भूमिका को कभी कोई सीरियसली नही लेता।बाप का प्यार भी असीमित और अतुलनीय है।अपनी बात के सपोर्ट मे मै तीन अलग-अलग स्टोरीज़ रख रहा हूँ,जो बिलकुल वास्तविक हैं और उनका जीवित और मृत दोनों से बराबर सम्बंध भी है।
सी-हार्स (समुद्री-घोड़ा) की अजब दुनिया मे,बच्चे का जन्म लेना एक पिता की कठिन मेहनत और समर्पण की कहानी सा है।माँ सी-हार्स, अंडों को पिता के हवाले कर देती है और पिता उन ढ़ेर सारे अंडों को अपने पेट पर एक थैली नुमा संरचना मे रख लेता है फ़िर अपनी पूँछ को किसी वनस्पति के साथ जोड़ कर उलटा लटक जाता है।इसके बाद शुरू होती है पिता के संघर्ष की कहानी जो बच्चों के जन्म लेने तक अत्यंत कष्टकारी होती है।एक ही स्थान पर निश्चल बने रहने के कारण उसे न केवल शिकारियों द्वारा मारे जाने का डर होता है बल्कि वह अपने भोजन की तलाश मे भी नही जा सकता।इस बीच माँ समय-समय पर खाने का प्रबंध करती रहती है।लेकिन अगर कहीं सी-हार्स माँ , किसी शिकारी का निवाला बन गयी तो बच्चों के जन्म लेने तक के समय के लिये उस पिता को अपने बच्चों के सुरक्षित जन्म के लिये भूखा ही रहना पड़ता है।कई बार तो इसहठधर्मिता मे उसकी जान भी चली जाती है।लेकिन बेचारा बाप और उसका दिल.... वह जान दे देता है लेकिन बच्चों पर आँच नही आने देता।
पेंगुविन पिता ,अपने बच्चे को अंडे मे से निकलने तक के लम्बे समय मे ,सागर से दूर रहकर महीनों तक भूखा-प्यासा रहता है।ऐसा वह इसलिये करता है ताकि उसका बच्चा सही सलामत उसकी दुनिया मे जन्म ले सके। आपने भी कभी न कभी ऐसा चित्र जरूर देखा होगा जिसमे सैकड़ों या हज़ारों की संख्या मे ये काली बोरियों से दिखने वाले जीव ,कोई सम्मेलन सा करते दिखाई पड़ते हैं।वास्तव मे वो सारे के सारे नर पेंगुविन ही होते हैं जो अंटार्कटिक की सर्द हवाओं में , अपने दोनो पैरों के बीच रखे अंडे को पलने के लिये ज़रूरी गर्मी दे रहे होते हैं।सात-आठ महीने की लंबी अवधि मे वो न तो कुछ खाते हैं और न ही सागर तक ही जाते हैं।इस बीच माँ पेंगुविन अपनी ज़िन्दग़ी को बिंदास जी रही होती है।सागर की गहराईयों मे कलाबाज़ियाँ खाती माँ पेंगुविन, बच्चे के अंडे से बाहर आने तक ,ग़ायब ही रहती है।इसके बाद भी बच्चे को खिला-पिला कर सुरक्षित रूप से पानी तक पहुंचाने की ज़िम्मेदारी भी पिता की ही होती है।पिता अपने भूख़े शरीर की परवाह न करते हुये एक लाल रंग का द्रव अपने मुँह से निकालता है और वही द्रव शिशु की पहली ख़ुराक होती है।
श्रवण कुमार की कहानी कौन नही जानता ! लेकिन अगर इस कहानी को मै दुबारा से सुनाऊँगा तो किसी न किसी कारण से ही।कहानी मे चेंज कुछ भी नही है अगर कुछ बदलाव है तो बस वह केवल घटनाओं के घटित होने के क्रम मे है जिसे शायद आप न जानते हों।
राजा दशरथ के शब्दभेदी बाण का ग्रास बन कर श्रवण कुमार का जीवन समाप्त हुआ और फ़िर उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई।लेकिन इस वर्णन मे बजाय माता-पिता के पिता-माता लिखना ज्यादा बेहतर होगा,बल्कि यही इसका सही क्रम भी है।सत्य तो यह है कि पिता की मृत्यु , पुत्र-वियोग मे हुई थी और इसके बाद माता की मृत्यु पति-वियोग मे ।समझने वाली बात यह है कि पिता की मृत्यु पुत्र के वियोग मे हुई थी।
इंसानी दुनिया मे लोगों का स्वभाव स्थिर नही है । कभी तो आपको 'सबसे अच्छे पापा' सुनने को मिलेगा तो कहीं बाप की काली करतूतें देखने-सुनने को मिल जायेंगी।लेकिन जानवरों और पक्षियों की दुनिया के नियम बिलकुल निर्धारित हैं।
अंत मे केवल इतना ही कि जहाँ माँ की ममता का सम्मान किया जाये वहीं बाप की 'बापता' को हाशिये पर न रखा जाये।
उसने दुख़ते कंधे पर भी
तुझे बिठाया था
अपने हाथों की तकिये मे
तुझे सुलाया था
परवाह नही की उसने अपने
जूते,कपड़े,खाने की
लेकिन तेरे नन्हे सपनों को तो
रोज सजाया था
वह बूढ़ा, जिसकी खाँसी बरदाश्त नही होती तुमसे
उसको तुमने रो-रोकर कितनी रात जगाया था !

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