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थकना मत चलते रहना

सबके मन में सुविचार भरें,
इस भाँति भला करतार करें।
अब आपस में सब एक रहें,
सब आपस में बस प्यार करें।
सुर एक रहे सब नेक बनें,
दुनिया अपने अनुसार करें।
यह देश सदा सिरमौर रहे,
सब भारत की जयकार करें॥१॥
थकना मत तू चलते रहना,
रुकना मत मंज़िल से पहले।
भय त्याग सदा बढ़ते रहना,
पथ लाख हवा विपरीत चले।
मिल प्यार भरे दिल से सबसे,
कुछ बोल मुहौब्बत के कह ले।
कर काम सदा इस भाँति सखे,
कटु दुश्मन भी लग जाय गले॥२॥
सबके मन में बस प्रेम क्षुधा,
अब प्रेम बिना सब क्रंदन है।
फिर भी अपने हित साधन को,
लगता हर मानव दुर्जन है।
जिसके मन पावन प्रेम भरा,
वह देव समान गुणीजन है।
बरसा कर प्रेम सुजीवन दे,
उसका नित ही अभिनन्दन है॥३॥
अपना अपना निज काम करो,
कर काम महान सुनाम करो।
तुम सेवक हो इस भारत के,
यह बात सदा मन ध्यान धरो।
यदि बात कहो अपने मुख से,
उन बातन से कबहूँ न टरो।
तुमको यदि मान मिले न मिले,
तुम मान किसी जन का न हरो॥४॥
रचनाकार- निर्दोष दीक्षित
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काव्य विधा-  दुर्मिल सवैया छंद
शिल्प-      चार चरण का छंद
               प्रत्येक चरण में आठ सगण (।।ऽ)8
               12, 12 वर्णों पर यति

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